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कर्नाटक: शहरी निकाय चुनाव में होगी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की पहली अग्निपरीक्षा

बैंगलुरू। 29 अगस्त को कर्नाटक में 105 शहरी स्थानीय निकाय के चुनाव होंगे। राज्य निर्वाचन आयोग ने गुरुवार को इसका ऐलान किया। राज्य में कांग्रेस और जेडीएस(S) गठबंधन सरकार की ये पहली अग्निपरीक्षा होगी।

105 स्थानीय निकायों में कुल 2574 वार्डों के लिए चुनाव होंगे। ये सारे वार्ड दक्षिण कर्नाटक के आठ जिलों, तटीय कर्नाटक के तीन जिले और उत्तरी कर्नाटक के 11 जिलों के तहत आते हैं और कुल वोटरों की लगभग 36 लाख है।

स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे 1 सितंबर को आएंगे। कर्नाटक में स्थानीय निकाय चुनाव की राजनीतिक अहमियत इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि ये राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद और 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ये चुनाव हो रहे हैं।

जेडीएस और कांग्रेस के बीच गठबंधन सरकार बनने के बाद से ही खींचतान मची हुई है। कई बार ये खुलकर सामने भी आ चुकी है। इसके बावजूद उत्तरी कर्नाटक औऱ तटीय इलाकों में इस गठबंधन की परीक्षा इसलिए नहीं होगी, क्योंकि इन पार्टियों की मौजूदगी यहां काफी कम है।

हालांकि कांग्रेस को तब ज्यादा नुकसान होगा, जब वो जनता दल सेक्यूलर को दक्षिणी कर्नाटक की सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मौका दे। क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की जेडीएस की यहां पकड़ मजबूत है। ऐसे में अगर यहां दोनों पार्टियां एकसाथ चुनाव लड़ती हैं तो नुकसान होगा।

अगर दोनों पार्टियां एकसाथ चुनाव लड़ती हैं तो खींचतान बढ़ने की आशंका ज्यादा है। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि इससे स्थानीय लेवल पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच में तनातनी बढ़ेगी। जो दोनों पार्टियों के लिए ठीक नहीं है। वो भी तब जब दोनों राज्य में अपने गठबंधन को मजबूत करने में जुटे हैं, ताकि भाजपा को रोका जा सके और 2014 के लोकसभा चुनावों के हिसाब से इस बार अपना प्रदर्शन बेहतर किया जा सके।

दोनों पार्टियों के लिए राज्य में अलग-अलग चुनाव लड़ना आसान नहीं है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में विरोधियों को रोकना बेहद मुश्किल होगा।

कांग्रेस की समन्वय समिति लेगी फैसला

इसे लेकर कांग्रेस ने काम भी शुरू कर दिया है। कर्नाटक के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिनेश गुंड्डू राव के मुताबिक, हमें समन्वय समिति की बैठक में इस पर फैसला लेना होगा। कुछ लोग कह रहे हैं कि हमें एक साथ चुनाव लड़ना चाहिए तो कुछ अलग-अलग लड़ने की बात कर रहे हैं। इसे लेकर हमें चर्चा करनी होगी।

वहीं जेडीएस की तरफ से भी बयान सामने आया है। पार्टी के प्रवक्ता और राष्ट्रीय महासचिव कुंवर दानिश अली ने कहा कि, इस मुद्दे पर हम रविवार को बैठक करेंगे, इसके बाद ही कोई फैसला होगा।

विधानसभा चुनाव से पहले आयोजित होने वाले शहरी निकाय चुनावों को वोट स्विंग के तरीके का संकेत माना जाता है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, जब 2013 में हुए शहरी निकाय के चुनावों में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था और इसके ठीक बाद हुए विधानसभा चुनावों में भी उसे बेहतर कामयाबी मिली थी।

राजनीतिक विश्लेषकों की ये है राय

हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में अगर दोनों पार्टियां एक साथ चुनाव लड़ती हैं तो कांग्रेस को नुकसान ज्यादा होगा। क्योंकि उत्तरी कर्नाटक में जेडीएस मजबूत है। ऐसे में कांग्रेस को साथ में चुनाव लड़ने का फायदा नहीं मिलेगा। दक्षिण कर्नाटक में भी कांग्रेस के लिए ऐसी ही स्थिति है।

दोनों ही पार्टियों अगर अलग-अलग चुनाव लड़ें तो उनके लिए फायदा ज्यादा है। इससे दोनों की पहचान राज्य में औऱ मजबूत होगी।

पहले भी दोनों पार्टियां लड़ चुकी अलग-अलग चुनाव

इससे पहले 2004-2006 के बीच में भी कांग्रेस और जेडीएस था। मगर उस वक्त भी दोनों ही पार्टियों ने शहरी निकाय चुनाव अलग-अलग लड़ने का फैसला किया था। ऐसे में बदले समीकरणों के तहत दोनों पार्टियों के लिए ये तय करना थोड़ा मुश्किल होगा कि वो शहरी निकाय के चुनाव एक साथ लड़ें या फिर अलग-अलग।

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