लोकसभा के रास्ते विधानसभा के लिए राकेश सिंह की लॉन्चिंग, क्या खतरे में है शिवराज की गद्दी?
भोपाल। मध्यप्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष राकेश सिंह ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान शानदार भाषण दिया। स्कीम और स्कैम के अंतर को बताने वाले इस भाषण के केंद्र में भले ही विपक्षी कांग्रेस रही हो, लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि इसके निशाने की जद में प्रदेश की राजनीति भी है।
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जैसे दिग्गजों की बुलंद आवाजों के बीच एक और आवाज लोकसभा में जमकर गूंजी। ये आवाज थी मध्यप्रदेश के बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह की। ऐसा पहली बार था जब राकेश सिंह के भाषण को नेशनल मीडिया में इस हद तक कवर किया गया हो। स्कीम वर्सेज स्कैम का उनका तंज उस वक्त तक सियासी फिजा में छाया रहा जब तक कि उसकी जगह राहुल गांधी के ‘मोदी मिलाप’ ने नहीं ले ली।
राकेश सिंह लगातार तीन बार से जबलपुर से बीजेपी के सांसद हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब उनके भाषण को मीडिया और सियासी गलियारों में इतनी तवज्जो दी गई। सभी मीडिया हाउसेज़ ने पूरे दिन इस भाषण को अपनी सुर्खियों में रखा। ऐसा नहीं है कि राकेश सिंह ने पहली बार इतना तल्ख भाषण दिया हो, वे जब भी बोलते हैं तो उनके भाषण में आक्रामकता दिखाई देती है। लेकिन, इस बार राकेश सिंह को मिली तवज्जो कहीं न कहीं इस ओर इशारा करती है कि मध्यप्रदेश में बीजेपी की शिवराज के समानांतर चेहरे की खोज पूरी हो चुकी है।
अगर हम बारीकी से देखें तो मध्यप्रदेश में सत्ताविरोधी लहर सूबे के मुखिया शिवराज सिंह के विरोध में काम कर रही है। शिवराज सिंह के नेतृत्व में चल रही सरकार पर अपेक्षाओं का बोझ इतना अधिक हो गया है कि उसे पूरा कर पाना उनके लिए आसान नहीं दिखता। हर वर्ग के निशाने पर शिवराज सिंह हैं। भीतरखाने भी शिवराज के खिलाफ पार्टी नेताओं का एक वर्ग मुखरता से खड़ा दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि लंबे समय बाद पहली बार मध्यप्रदेश बीजेपी का अध्यक्ष शिवराज की बजाय अमित शाह की मर्जी से बना है। राकेश सिंह को अमित शाह का करीबी माना जाता है और पार्टी अध्यक्ष बनने से पहले कई बार कयास लगाए जा रहे थे कि वे केंद्र में मंत्री भी बन सकते हैं, लेकिन उनके हाथ में मंत्रालय नहीं बल्कि प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी आई।
ऐसी बहुत सी वजहें हैं जिनके चलते राकेश सिंह, मध्यप्रदेश में अमित शाह की भविष्य की रणनीति में फिट बैठते हैं। सबसे बड़ी बात कि महाकौशल से आने वाले राकेश सिंह भाजपा के ऐसे बहुत से नेताओं को साध सकते हैं, जिनके शिवराज सिंह चौहान से रिश्ते सहज नहीं हैं। फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रह्लाद पटेल पूर्व में केंद्रीय मंत्री रह चुके पार्टी के दो ऐसे सांसद हैं जो शिवराज के नेतृत्व के प्रति नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। प्रदेश के आदिवासी अंचल में पकड़ रखने वाले कुलस्ते अपने बयानों से अक्सर ये जाहिर करते रहते हैं कि प्रदेश में नेतृत्व बदलना चाहिए, जबकि प्रह्लाद पटेल के संबंध भी शिवराज सिंह से बहुत अच्छे नहीं हैं। लेकिन, राकेश सिंह की बात की जाए तो वे जबलपुर के नज़दीकी इलाकों से संबंध रखने वाले इन दिग्गजों के साथ काफी सहज हैं। इसी तरह पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और शिवराज के बीच जिस तरह के रिश्ते हैं वो किसी से छिपे नहीं हैं।
मध्यप्रदेश बीजेपी में इससे पहले अध्यक्ष रहे नंदकुमार चौहान को शिवराज की परछाई की तरह देखा जाता था। नंदू भैया के निर्णयों में भी इस बात की झलक दिखती थी। लेकिन, राकेश सिंह पर अमित शाह के अलावा किसी का प्रभाव दिखे ये कहना मुश्किल है। इन हालात में ऐसा लगता है कि राकेश सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाने से लेकर लोकसभा में विपक्ष पर उनका हल्ला बोल ये सब एक कुशल प्रबंधन के तहत किया जा रहा है ताकि मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह के समानांतर एक चेहरा या यूं कहें कि राकेश सिंह का चेहरा तैयार किया जा रहा है। और बीजेपी के लिए ये कुशल प्रबंधक कौन है इसे शायद बताने की जरूरत नहीं। अगर प्रदेश में पार्टी की चुनावी रणनीति पर गौर किया जाए तो सोशल मीडिया पर एक खास तरह की कैंपेनिंग नज़र आती है, जिसमें बीजेपी की बीती सरकार की खामियों का ठीकरा शिवराज पर फोड़कर मोदी और पार्टी दोनों को बचाने की जद्दोजहद की जाती है। कैंपेनिंग का ये तरीका भी इस ओर इशारा करता है कि पार्टी ने भी मान लिया है कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन पार्टी के लिए फायदेमंद होगा। शायद इसी उधेड़बुन में बीजेपी ने राकेश सिंह को आगे करने की नीति पर काम करना शुरू कर दिया है।