गुलाम हसन बताते हैं कि जब नेहरू जी आते थे कश्मीर, तो मलिक परिवार को याद करते थे। लेकिन आगे चलकर हमारा पूरा महत्व फारूक अब्दुल्ला सरकार ने खत्म कर दिया। लेकिन वो कांगड़ी कहां है, इस बारे में पूछे जाने पर मलिक कहते हैं कि बूटा मलिक से ये कांगड़ी तत्कालीन राजाओं ने ले ली थी और अब ये किसी को नहीं पता कि ये कांगड़ी कहां है। वो कहते हैं, ‘हमने बहुत कोशिशें कीं, उसके बारे में पता करना चाहा लेकिन राजतरंगिणी में भी हमारे परिवार का जिक्र है और इस पौराणिक कथा का भी।’
मलिक कहते हैं, ‘बूटा मलिक की मौत हुई और उसके बाद उनकी दरगाह जंगल में जाकर बनी। उन्हीं के नाम पर हमारे गांव का नाम बटकोट पड़ा है। अमरनाथ यात्रा के दौरान हम लोग मांस नहीं खाते क्योंकि हमें पता है कि इस समय में मांस खाना ठीक नहीं होता है।’ मलिक कहते हैं कि अमरनाथ उन तीर्थयात्राओं में से है जिसका कश्मीर में मुस्लिम समुदाय पूरे दिल से सम्मान करते हैं।