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कमलनाथ-सिंधिया के शोर में दब गई ‘चाणक्य’ की आवाज, राहुल ने भी किया किनारा!

भोपाल। मध्यप्रदेश का मंदसौर जिला इन दिनों सियासत का अखाड़ा बन गया है। इसी अखाड़े में पिछले साल छह जून को छह किसानों ने अपनी जान गंवाई थी और इस साल छह जून को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनावी बिगुल फूंकते हुए किसान कार्ड पर दांव लगाया है।

राहुल गांधी बार-बार ये साबित करना चाह रहे थे कि किसानों की सच्ची हितैषी कांग्रेस है, बीजेपी नहीं। जिसके जवाब में बीजेपी ने आईना दिखाते हुए पूछा कि 12 जनवरी 1998 को बैतूल के मुलताई तहसील में किसानों की हत्या के वक्त किसकी सरकार थी। उस समय भी किसान ओलावृष्टि और बीमारी से खराब फसलों का मुआवजा ही मांग रहे थे। तब पुलिस फायरिंग में 21 किसानों की मौत हुई थी और 50 किसान घायल हुए थे। जो खुद कीचड़ में सने हैं वो दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे हैं।

पिपलिया मंडी में सजे मंच पर राहुल गांधी एक कुशल वक्ता की तरह किसानों की हर दुखती रग छूने की कोशिश किये, या यूं कहें कि कुछ हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल कर रहे थे, जैसे वो जहां भी जाते हैं कोई न कोई रिश्ता जोड़ लेते हैं। उन्होंने शिवराज से लेकर मोदी तक और मंदसौर से भोपाल वाया दिल्ली तक सबकी खबर ली। लेकिन विरोधियों की खबर लेने में वह अपनों की खबर लेना भूल गये, पूरे कार्यक्रम में राहुल के दायें-बायें कमलनाथ व सिंधिया कुशल सेनापति की तरह उनको सुरक्षा कवर दे रहे थे, जिसे तोड़ने का साहस खुद कांग्रेस के चाणक्य भी नहीं कर सके और राहुल भी कमलनाथ के अनुभव और सिंधिया के युवा जोश की तारीफ कर चुप हो गये।

वहीं मंच पर कमलनाथ, सिंधिया, अरुण, अजय ने भी माइक संभाला, लेकिन दिग्विजय के हाथ माइक लगा ही नहीं, लिहाजा उनको आडवाणी जैसे खामोश रहकर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि, सियासी चाणक्य की ये बेकदरी कांग्रेसी सूरज पर ग्रहण न बन जाये क्योंकि इस बार जो चाणक्य ने अपना केश खोला तो नया चंद्रगुप्त मिलने में भी समय नहीं लगेगा और न ही मदद करने वालों की कमी रहेगी। लिहाजा अब राहुल के साथ कमलनाथ के लिए भी दिग्विजय को मनाने की चुनौती है। इसके पीछे एक वजह और भी कि एक दोस्त या यूं कहें कि घर के एक सदस्य की नाराजगी या दुश्मनी सैकड़ों सदस्यों को बरबाद करने की ताकत रखती है।

जैसे विभीषण ने राम से मिलकर रावण की लंका सहित पूरे कुल का विनाश करवा दिया था, जयचंद ने मोहम्मद गोरी से मिलकर पृथ्वीराज को मरवा दिया था, ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब लोग बदला लेने के लिए दुश्मन खेमे के साथ खड़े हुए हैं। यदि दिग्विजय ने भी इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए बीजेपी से हाथ मिलाया तो फिर कांग्रेस का क्या हस्र होगा। हालांकि, ये संभव तो नहीं है लेकिन सियासत में असंभव कुछ भी नहीं है।

राहुल के साथ मंच साझा करने की तस्वीरें दिग्गी ने नहीं की शेयर
दिग्विजय सिंह की नाराजगी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राहुल के साथ मंच साझा करने की तस्वीरें ज्योतिरादित्य, कमलनाथ, अरुण सहित कई नेताओं और कांग्रेस के ऑफिसियल ट्विटर पर शेयर किया है, लेकिन दिग्विजय ने एक भी ट्वीट नहीं किया और न ही राहुल के साथ मंच साझा करने की कोई तस्वीर शेयर की है, जबकि दिग्विजय सिंह का एक-एक ट्वीट सुर्खियों में रहता है, ऐसे में दिग्गी राजा की खामोशी बहुत कुछ कहती है।

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