कोई व्यक्ति कैंसे खुदकी शक्तियों के दरवाजे खोल सकता है , क्या साधना से सिद्धियां मिल सकती हैं Par 2
कहते हैं मनुष्य के अंदर शक्तियों का भंडार है फिर भी लोग दुखी और परेशान हैं कोई व्यक्ति कैंसे खुदकी शक्तियों के दरवाजे खोल सकता है और इसका तरीका क्या है
वोम गुरू .. आज की लाइफ बहुत जटिल हो गई है लोग इसे जी नहीं रहे हैं इसे काट रहे हैं कमियां और मुसीबतें पीछा नहीं छोड़ती उस गाड़ी की तरह हो गई है जिसका इंजन कम क्षमता का है लेकिन उस पर बोझ केपेसिटी से ज़्यादा लाद दिया गया है, जीवन नीरस और निरर्थक होता चला जा रहा है , असामान्य होता चला जा रहा है सबका शरीर एक जैसा दिखता है लेकिन इसके बावजूद भी हर एक की लाइफ की कंडीशन बिल्कुल अलग अलग है उन सब की जीवन स्थितियां अलग-अलग है ऐसा लगता है कि बनाने वाले ने कोई भेदभाव किया है , प्रकृति कुछ अंतर कर रही है , लेकिन ऐसा होता तो ग्रह-नक्षत्र भी अपनी धुरी पर नहीं घूमते प्रकृति में भेदभाव नहीं है इसलिए सारे ग्रह नक्षत्र तारे सभी निश्चित दूरी पर निश्चित गति में गति कर रहे हैं , दरअसल लाइफ में जिन लोगों को सिर्फ सतही ज्ञान मिला वे सरफेस पर जी रहे हैं , इस यूनिवर्स ने बीज के रूप में वैभव का भंडार हमें दिया है लेकिन ऐसा लगता है कि उस भंडार को ना तो हम खोज पाए हैं ना ही उसका उपयोग कर पाए, साधना के जरिए इसी भंडार को हासिल करने की कोशिश की जाती है ,दरअसल हम इस जीवन को जड़ रूप में , स्थूल रूप में , फिजिकल रूप में देखते हैं जबकि लाइफ उससे कहीं ज्यादा व्यापक है फिजिकल बॉडी से हम सिर्फ कुछ चीजों को हासिल कर सकते हैं , जड़ की सेवा से सिर्फ सुविधाएं मिल सकती लेकिन चेतन से , कांशसनेस से आनंद और उत्साह का खजाना मिल सकता है तत्वज्ञान एक साइंस है और इसके जरिए हम अपनी लाइफ में ऐसा बहुत कुछ पा सकते हैं जो हमें फिजिकल तौर पर संभव दिखाई नहीं देता हमारे दो ही रूप है , सूक्ष्म रूप में तरंगों के रूप में इनविजिबल रूप में भी बहुत कुछ बिखरा हुआ है , साधना के भी दो रूप हैं , एक बहिरंग और एक अंतरंग साधना , तत्व दर्शन अंतरंग को देखता है , जीवन की संपदा को सुव्यवस्थित और समुन्नत बनाता है साधना के जरिए हमारे अंदर बैठी हुई सुप्त चेतना को, संपदा को ब्रह्म ज्ञान को , आंतरिक शक्ति के दरवाजे को खोला जाता है , याचना और साधना में है याचना यानि जिसके लिए कोई कीमत न चुकाई जाए और साधना जिसके लिए जो हासिल किया जाए जाना है उसके बराबर मूल्य चुकाना , याचना से तिरस्कार मिलता है , लेकिन साधना से फल मिलता है , दुनिया मनोरम दृश्य से भरी पड़ी है सिर्फ देखने वाली आंखें चाहिए , दुनिया में सुमधुर ध्वनियों का प्रभाव बिखरा पड़ा है , बस सुनने वाले कान चाहिए , साधना के लिए सबसे पहले व्यक्ति को पात्र बनना पड़ता है , जो व्यक्ति पात्र नहीं है उस व्यक्ति को साधना मिल तो सकती है लेकिन ठहर नहीं सकती ,
क्या साधना से सिद्धियां (Attainments )मिल सकती हैं
वोम गुरू … जी हां साधना से मिल सकती है अदृश्य शक्तियां और सिद्धियां , इस दुनिया में अलग-अलग तरह का भोजन मौजूद है चींटी को उसकी कैपेसिटी के मुताबिक भोजन मिलता है और हाथी को उसकी क्षमता के मुताबिक जो जितना पात्र है उसको उतना मिल जाता है , ईश्वर का खजाना किसी के लिए बंद नहीं है लेकिन जो जितना लायक हैं जो जितना योग्य है उसे उतना ही मिलता है, साधना के जरिए हम अपने पात्र को बड़ा कर सकते हैं बिना कैपेसिटी के बढ़ाएं हम ज्यादा हासिल नहीं कर सकते, साधना में मैग्नेटिक पावर है पर हम जिस योग्यता को हासिल करने के लिए जितनी ज्यादा चुंबकीय शक्ति हासिल करेंगे वह योग्यता उतनी ही तेजी से हमारे पास खिंची चली आएगी ,साधना का मैग्नेटिक पावर इनविजिबल फोर्सेस को आकर्षित करता है,
सिद्धियां क्या होती है
वोम गुरू … एक सिद्धि वह होती है ऊपर से , बाहर से प्राप्त होती है एक वह होती है जो अंदर से हासिल होती है अंदर से उभरती ,हम सब के भीतर बहुत कुछ है कहते हैं कि हम सबके अंदर ईशवरीय क्षमता विराजित हैं , हम सबके अंदर जो शक्तियां हैं जो पावर्स है जो एनर्जी है वह सोई हुई अवस्था में नहीं है प्रसुप्त अवस्था में है , समर्थ बन कर योग्य बन लायक बन कर हम अपने अंदर की प्रसुप्त शक्तियों को जागृत कर सकते हैं और बाहर व्याप्त शक्तियों को हासिल कर सकते हैं
सब कुछ मौजूद है बस उस का सृजन करना है साधना की फील्ड में वह लोग निराश रह जाते हैं जो आत्म परिष्कार , स्व अभ्युत्थान , सेल्फ रिफाईनमेंट , आल्टरेशन ,अमेंडमेंट , अफपग्रोथ ,अपग्रेउेशन के लिए मेहनत नहीं करना चाहते , विद्या को हासिल करने के लिए तपश्चर्या (asceticism असेटिसिज़म )जरूरी है साधना पारस पत्थर की तरह है हमारा शरीर कल्पवृक्ष (laurel ) की तरह साधना के जरिए इस शरीर को कल्पवृक्ष (laurel ) में बदलकर अमृत ( ambrosia , nectar ,honeydew )
हासिल किया जा सकता है चिंतन और कर्म का योग यानी थॉट्स और एक्शन का कॉन्बिनेशन चिंतन यानी आत्मज्ञान हासिल करने के प्रक्रिया और क्रिया यानी योग विज्ञान का प्रयोग , ज्ञान और कर्म (deed)
दोनों जब मिल जाते जीवन में संतुलन (balance) स्थापित हो जाता है हमारे कॉन्शियस में देवी और आसुरी , पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों तरह की शक्तियां , दोनों तरह के तत्व मौजूद रहते हैं , हमें माली की तरह पौधों को सीचना है और खरपतवार को हटाते जाना है , अच्छे विचार, सोच, भावनाओं और आचरण को सींचना साथ ही निगेटिविटी को हटाते जाना
हमारे अंदर ब्रह्मअग्नि मौजूद है , यह आंतरिक ऊर्जा है जिसे चेतना ऊर्जा भी कहा जाता है , ब्रम्हविद्या ज्ञान और भक्ति का योग है जिससे मोक्ष का दरवाजा खुलता है I
ब्रम्हविद्या = ज्ञान + भक्ति
ब्रह्मवर्चस साधना = ब्रह्मज्ञान + ब्रह्मतेज
साधना = ज्ञान + तप
भक्ति और कर्म, ज्ञान और तप ,ब्रह्मज्ञान और ब्रह्मतेज दोनों के समन्वय से ब्रह्मवर्चस साधना संपन्न होती है I
योग और तप दोनों ही साधना के रूप हैं ,ज्ञानयोग के जरिए हमारी सोच को , बिलीव सिस्टम को परिष्कृत (प्यूरीफाई) किया जाता है , अनुभूति , सुनना और पढ़ना यह वो तरीके हैं जिनके जरिए ज्ञान योग हासिल किया जा सकता है , अन्य योग में हमारी आदतें (हैबिट्स) ,प्रवृत्तियां(टेंडेंसी) और मनोवृत्तियों को दुरुस्त किया जाता है , परिष्कृत किया जाता है I साधना का दूसरा चरण है ब्रह्मतेज यानी पर्सनैलिटी , इंटरनल एनर्जी, सेल्फकंट्रोल , प्रसुप्त शक्तियों का जागरण और उन शक्तियों का प्रायोगिक अभ्यास I
सेल्फ कंट्रोल हासिल करने के लिए व्रत,उपवास,ब्रम्हचर्य,आत्मानु
दूसरे चरण में प्रसिद्ध शक्तियों का जागरण किया जाता है इसके लिए जप ध्यान अनुष्ठान,पुरश्चरण ,प्राणायाम,सोहम मुद्राएं बंद त्राटक जैसी विधियों का प्रयोग किया जाता है I
अपनी सहनशक्ति को बढ़ाना विपरीत परिस्थितियों में साहस और संयम बनाए रखना ,भूत (Past) अपने पास्ट को भूलकर धैर्य और शांति बनाए रखना I
तप के द्वारा हमारे अंदर बैठी हुई शक्तियां जागृत होती है ऊपर की ओर बढ़ती है एनर्जी हासिल करने के बाद तांत्रिक शक्तियां जगाने के बाद उन शक्तियों का उपयोग जानना और सीखना भी बहुत जरूरी है I
आंतरिक उर्जा का क्या उपयोग है
वोम गुरू – परमाणु और अणु से बम बनाना है यह बिजली यह हमें तय करना पड़ेगा , पानी को गर्म किया जाए तो भाप बन जाता है लेकिन उसे यदि प्रेशर कुकर में रोका जाए तो विस्फोट भी कर सकता है , खाना भी पका सकता है, और वही भाप रेल के इंजन को भी चला सकती है शरीर के अंदर जो आज है जो तेज ऊर्जा है उसे नीचे की तरफ जाने से रोकना और ऊपर की तरफ खींचना यही तक है साधना विज्ञान में यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि के योग अष्टांग योग कहते हैं
हम सबके अंदर एक ऐसी जीवन शक्ति है जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता यही कभी काम ऊर्जा के रूप में एक्सप्रेस होती है कभी रोज के रूप में कभी तेज के रूप में कभी क्रिएटिविटी के रूप में कभी क्रोध के रूप में , इसे कुंडलिनी शक्ति कहा जाता है इसके जागरण के अनेक फायदे हैं , आप अपना व्यवसाय अपना व्यापार अधिक कुशलता से चला सकते हैं , छात्रों के मेमोरी पावर बढ़ सकती है , एकाग्रता बढ़ सकती है ,अधिकारियों की प्रशासनिक योग्यता बढ़ सकती है, वैज्ञानिकों की अविष्कार क्षमता बढ़ सकती है, इस शक्ति के जागरण से प्रेरणा और कंस्ट्रक्टिव पावर्स अपने आप मिल जाती है शक्ति आपको संतुष्टि देती है स्थाई आनंद देती है , यह व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा से आंतरिक ऊर्जा से जोड़ती है , आपका सम्मान बढ़ जाता है अपनी खुद की नजरों में , यही तत्वज्ञान है यही मेटा फिजिक्स है
वोम गुरू अतुल विनोद पाठक .. जानेमाने टीवी पत्रकार व आध्यात्मिक गुरू हैं उनसे 7223027059 पर व्हाटसएप पर संपर्क किया जा सकता है अधिक जानकारी के लिए आप womguru.in और womguru.com वि
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