संसदीय समिति ने आशाकर्मियों को निश्चित मासिक वेतन दिये जाने की वकालत की
नई दिल्ली। आशाकर्मियों के कामकाज की सराहना करते हुए संसद की एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में गर्भवती महिलाओं के लिए प्रसूति केंद्रों के पास प्रसवपूर्व देखभाल केंद्र बनाने की सिफारिश करने के साथ ही गर्भवती महिलाओं की देखभाल करने वाली आशाकर्मियों को निश्चित मासिक वेतन दिये जाने की वकालत की।
‘महिलाओं को शक्तियां प्रदान करने संबंधी समिति’ ने आज संसद में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में देशभर में काम कर रहीं आशाकर्मियों के कामकाज की सराहना करते हुए कहा कि उनके परिवारों को थोड़ी वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए सरकार को उन्हें प्रोत्साहन राशि देने के साथ कम से कम तीन हजार रुपये प्रतिमाह निश्चित मासिक वेतन देने के लिए एक प्रस्ताव वित्त मंत्रालय को भेजना चाहिए।
गौरतलब है कि आशाकर्मियों को निश्चित मासिक वेतन की मांग समय समय पर उठती रही है। संसद में भी सदस्य इस विषय को उठाते रहे हैं। फिलहाल आशाकर्मियों को सरकार की ओर से मानदेय दिया जाता है।
भाजपा सदस्य विजया चक्रवर्ती की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि केंद्र और राज्य की नीतियों में निर्बाध समन्वय से ही विशेषत: देश में मातृ और शिशु मृत्यु दर को नीचे लाने और प्रसवपूर्व, प्रसव के समय और प्रसव के बाद दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार कर भारत में मातृ तथा शिशु स्वास्थ्य परिदृश्य के समग्र विकास में योगदान कर महिला स्वास्थ्य देखभाल में उल्लेखनीय परिवर्तन लाये जा सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार समिति ने अध्ययन के दौरान पाया कि मंत्रालय ने गर्भवती महिलाओं के लिए परिवहन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। समिति ने सिफारिश की कि सरकार ऐसे प्रसवपूर्व केंद्रों का निर्माण करे जो प्रसूति केंद्रों के निकट हों और जहां प्रसूति की अनुमानित तिथि से 7 से 10 दिन पहले गर्भवती महिलाओं को लाकर रखा जा सके। जहां कुशल चिकित्साकर्मी उनकी देखभाल करेंगे और उन्हें उनकी सेहत की जरूरत के उपयुक्त भोजन और दवाइयां प्रदान करेंगे।
समिति का मानना है कि इससे अधिकांश गरीब और कमजोर परिवारों के खर्च में कमी आएगी जिन्हें देश के कई भागों में दूरस्थ अस्पतालों तक गर्भवती महिलाओं को ले जाने के लिए वाहन किराये पर लेने के लिए भारी धनराशि का भुगतान करना पड़ता है। इसके अलावा इन केंद्रों के होने से मातृ मृत्यु और प्रसव के दौरान होने वाली अन्य जटिलताओं में कमी आएगी।
समिति ने सुझाव दिया कि सरकार सुंदरबन के दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों जैसे गोसाबा, पाथर प्रतिमा और संदेशखली तथा मुर्शिदाबाद जिले में पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा ऐसे केंद्र बनाये जाने में प्राप्त की गयी सफलता का अध्ययन करें।
समिति ने पाया कि पश्चिम बंगाल में इस पहल से एक साल से कम समय में मातृ मृत्यु दर गिरकर 41 से 27 प्रति हजार जन्म हो गयी है।