दिवालिया कानून में एक और संशोधन की तैयारी में सरकार
नई दिल्ली। लगता है कि फंसे कर्जे (एनपीए) को कम करने के लिए सरकार की तरफ से चलाया गया अमोघ अस्त्र कुछ काम नहीं कर रहा। कुछ माह पहले जब इन्सॉल्वेंसी और बैंक्रप्सी कोड (आइबीसी) लागू किया गया तो माना गया कि यह 9.5 लाख करोड़ रुपये के बैंकों के फंसे कर्जे की समस्या का अंतिम समाधान निकाल लेगा। लेकिन छह महीने में यह साफ हो गया है कि आइबीसी के मौजूदा स्वरूप में भी कई सारी खामियां हैं, जिससे फायदे कम आने वाले दिनों में मुश्किलें ज्यादा हो सकती हैं।
लिहाजा सरकार ने अब आइबीसी में संशोधन में सुझाव के लिए इन्सॉल्वेंसी लॉ कमेटी बनाई है। यह दो महीने में अपने सुझाव देगी। ऐसे में यह आशंका जताई जा रही है कि आइबीसी के तहत कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियों की संपत्तियों को बेचने की प्रक्रिया और लंबित होगी।
सरकार की तरफ से गठित समिति में कंपनी कार्य विभाग के सचिव अध्यक्ष होंगे। उनके साथ वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक के कुछ अधिकारी भी शामिल होंगे। सरकार ने यह कदम तब उठाया है, जब इस तरह की खबरें आ रही थी कि बैंकों को कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियां ही अपनी जब्त संपत्तियों को दूसरे तरीकों से खरीदने की जुगत में लगी थी।
माना जा रहा है कि नई समिति ऐसे प्रावधान लाएगी जिससे एक ही प्रमोटर को अपनी जब्त संपत्तियों को रोकने की व्यवस्था हो। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस बारे में अमेरिका, ब्रिटेन समेत अन्य देशों के मौजूदा दिवालिया कानून में अपनाए गए प्रावधानों को देखना होगा। दैनिक जागरण ने सबसे पहले यह खबर प्रकाशित की थी कि आरबीआइ ने एक दर्जन ऐसी कंपनियों की सूची बनाई है, जिनसे कर्ज वसूली की जानी है।
इनमें बिजली, स्टील जैसे क्षेत्रों की कई दिग्गज कंपनियां शामिल हैं। इन सभी का मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) को आरबीआई की तरफ से सौंपा गया है। इसके अलावा भी तीन दर्जन और कंपनियों का मामला भेजा गया है।
एनसीएलटी को कहा गया है कि इन मामलों को दिसंबर, 2017 तक निपटा कर एनपीए के स्तर को घटाने में मदद की जाए। हालांकि अभी तक इन मामलों में कोई खास प्रगति नहीं है। इसके पीछे एनसीएलटी में उपयुक्त पेशेवरों की कमी भी एक बड़ी वजह है। आइबीसी के बनने के बाद एनसीएलटी में कुल 300 मामले भेजे जा चुके हैं।
एनपीए ने आठ बैंकों को लगाई बड़ी चपत-
एनपीए घटाने की लड़ाई तो पिछले कई वर्षों से चल रही है, मगर अब एक ताजा आंकड़ा आया है जो बताता है कि फंसे कर्जे से सरकारी बैंकों को कितना भारी नुकसान हो रहा है। वित्त मंत्रालय की तरफ से तैयार कुछ आंकड़े बताते हैं कि जिस बैंक में एनपीए का स्तर जितना बढ़ा है, उनका एनआइएम यानी शुद्ध ब्याज मार्जिन (नेट इंटरेस्ट मार्जिन) उतना ही कम है।
एनआइएम बैंकों की तरफ से कुल भुगतान किए गए ब्याज और कुल अर्जित ब्याज का अंतर होता है। इसे बैंकों की वित्तीय सेहत का सबसे पुख्ता मानक माना जाता है। तीन फीसद से कम एनआइएम को खराब माना जाता है। जबकि देश के कई ऐसे बैंक हैं, जिनका एनआइएम दो फीसद से भी कम है। इन बैंकों के शुद्ध एनपीए का स्तर 16 से 25 फीसद के बीच है।
एनपीए पर सरकार की तरफ से जुटाए गए ताजा आंकड़े इस समस्या के गंभीर होने की तरफ भी इशारा करते हैं। यूको बैंक का शुद्ध एनपीए 19.7 फीसद है तो यूनाइटेड बैंक में यह 18.8 फीसद है। बढ़ते एनपीए ने इन बैंकों के एनआइएम को गहरी चपत लगाई है।
यूको बैंक का उदाहरण सामने है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में बैंक को 622.56 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। बैंक का एनआइएम कम होकर 1.1 फीसद पर आ चुका है। इसी तरह से यूनाइटेड बैंक का घाटा भी बढ़ता जा रहा है। पहली तिमाही में इस बैंक को 211 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। दूसरी तिमाही में यह बढ़कर 345 करोड़ रुपये का हो गया। बैंक का एनपीए महज 1.7 फीसद है।
फंसे कर्ज की मार-
बैंक- शुद्ध एनपीए (फीसद में)
आइडीबीआइ – 25
इंडियन ओवरसीज बैंक – 22.7
यूको बैंक – 19.7
यूनाइटेड बैंक- 18.8
बैंक ऑफ महाराष्ट्र – 18.5
सेंट्रल बैंक -17.3
देना बैंक- 17.2
ओरियंटल बैंक – 16.3